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भंडारा जिला दुग्ध संघ निजी प्रतिस्पर्धा और आपूर्ति में कमी से जूझ रहा है।

पूर्व विदर्भ में एकमात्र सुव्यवस्थित रूप से संचालित भंडारा जिला दुग्ध उत्पादक संघ वर्तमान में अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है। सभी ओर निजी दुग्ध संस्थाओं के बढ़ते नेटवर्क और दुग्ध उत्पादक किसानों का उनकी ओर झुकाव होने के कारण जिला दूध संघ को दूध की आवक में कमी आ गई है।

भंडारा जिला दूध संघ ने दुग्ध उत्पादक किसानों के साथ मिलकर सफलता की ऊँचाइयाँ प्राप्त की हैं। उत्कृष्ट संघ के रूप में भंडारा दूध संघ को सम्मानित भी किया जा चुका है। एक समय में इस संघ का दूध वितरण लाखों लीटर से ऊपर पहुँच चुका था। समय के साथ-साथ निजी दुग्ध संस्थाओं का प्रभाव बढ़ा। उन्होंने दुग्ध उत्पादक किसानों को आकर्षित कर अपने पास खींच लिया। परिणामस्वरूप भंडारा दूध संघ के पास आने वाला दूध निजी संस्थाओं की ओर चला गया। वर्तमान स्थिति में भंडारा संघ को लगभग 30,000 लीटर दूध का ही वितरण प्राप्त हो रहा है।

पूर्व विदर्भ के अन्य जिलों में दूध संघ बंद हो चुके हैं, जबकि भंडारा जिला दूध संघ टिके हुए है। परंतु, अब दूध की आपूर्ति कम और व्यय बढ़ गया है। भंडारा संघ का मासिक खर्च 60 से 70 लाख रुपये के बीच है। संघ को आर्थिक सहारा प्रदान करने हेतु शासन स्तर पर प्रयास जारी हैं। शासन से अनुरोध है कि संघ को समय पर सहायता प्रदान की जाए और दुग्ध उत्पादक किसान भंडारा संघ को अधिक से अधिक दूध उपलब्ध कराएँ।

संघ का उत्पादन राज्य के बाहर:

भंडारा दूध संघ से विभिन्न दुग्धजन्य उत्पाद तैयार किए जाते हैं। इनमें सुगंधित दूध और हलवा राज्य के बाहर भेजा जाता है। राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड द्वारा शिशु संजीवनी योजना के तहत कुपोषित माताओं और बच्चों के लिए पोषणवर्धक हलवा तैयार करने का कार्य इस संघ को दिया गया है। प्रत्येक माह डेढ़ लाख हलवे के पाउच तैयार कर आदिवासी क्षेत्रों में कुपोषित माताओं और बच्चों को भेजा जाता है। इस हलवा उत्पादन से भंडारा संघ को आर्थिक सहारा भी प्राप्त होता है, ऐसी जानकारी संघ के कार्यकारी निदेशक करण रामटेके ने दी।

TALK WAY NEWS

abdul hakim M.A.(urdu Lit.) Bachelor in journalism LLB diploma in mechnical engineering

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