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दिल्ली फ्यूल पॉलिसी: कबाड़ के भाव में बिक रही सेकेंड हैंड कारें, इन बाजारों के डीलर्स परेशान

Delhi EOL Ban Impact: दिल्ली सेकेंड हैंड कार बाजार संकट में आ गया है. पुरानी पेट्रोल और डीजल कारों की कीमतों में 50% तक गिरावट देखी गई है. आइए जानें इस गिरावट के पीछे क्या-क्या कारण है.

Delhi EOL Ban Impact: दिल्ली में हाल ही में पुरानी पेट्रोल और डीजल वाहनों की कीमतों में जबरदस्त गिरावट दर्ज की गई है. इस गिरावट की सबसे बड़ी वजह 1 जुलाई 2025 को लागू किया गया एंड-ऑफ-लाइफ (EOL) वाहनों पर प्रतिबंध माना जा रहा है. हालांकि, सरकार को जनता के भारी विरोध के बाद यह बैन आंशिक रूप से वापस लेना पड़ा, लेकिन तब तक बाजार को भारी नुकसान हो चुका था.

50% तक कीमतों में आई गिरावट

चैंबर ऑफ ट्रेड एंड इंडस्ट्री (CTI) के चेयरमैन बृजेश गोयल के मुताबिक, दिल्ली में ओवरएज गाड़ियों का सेकेंड हैंड बाजार बुरी तरह प्रभावित हुआ है. उन्होंने कहा कि 60 लाख से अधिक वाहन ऐसे हैं जो इस नियम की चपेट में आ गए हैं और उनकी बिक्री की कीमत 40 से 50 फीसदी तक गिर चुकी है.

गोयल के अनुसार, व्यापारी अब मजबूरी में अपनी पुरानी गाड़ियों को मूल कीमत के एक-चौथाई पर बेच रहे हैं. उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि जो कारें पहले 6 से 7 लाख रुपये में बिकती थीं, अब वही 4 से 5 लाख में भी मुश्किल से खरीदी जा रही हैं.

दूसरे राज्यों में बिक रहीं दिल्ली की कारें

दिल्ली के करोल बाग, प्रीत विहार, पीतमपुरा और मोती नगर जैसे इलाकों में 1000 से ज्यादा सेकेंड हैंड कार डीलर काम करते हैं. आमतौर पर इनकी गाड़ियां पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल जैसे राज्यों में बेची जाती हैं, लेकिन अब हालात ये हो गए हैं कि बाहरी राज्यों के खरीदार दिल्ली के व्यापारियों की मजबूरी का फायदा उठा रहे हैं और मोलभाव कर रहे हैं. इससे दिल्ली के कार डीलर और ज्यादा नुकसान झेल रहे हैं.

एनओसी प्रक्रिया में आ रही हैं बड़ी दिक्कतें

अब पुरानी गाड़ियों को दूसरे राज्यों में बेचने के लिए जरूरी अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) लेना पहले जितना आसान नहीं रहा. कारोबारी बताते हैं कि अब एनओसी मिलने में काफी समय लग रहा है और सरकारी दफ्तरों में कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. इससे व्यापार में देरी हो रही है और सेकेंड हैंड गाड़ी बेचने वालों को परेशानी हो रही है.

कई व्यापारियों का कहना है कि पहले यह प्रक्रिया कुछ ही दिनों में पूरी हो जाती थी, लेकिन अब फाइलें लंबित रहने लगी हैं, जिससे डील कैंसिल हो रही हैं और बाजार में विश्वास घट रहा है.

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