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“यह कष्ट बोरीवली के प्रत्येक निवासी के लिए असह्य हो गया है” — अवधूत ने वीडियो साझा करते हुए अपनी व्यथा व्यक्त की।

मुंबई, 25 जुलाई – संगीतकार, गायक और निर्देशक अवधूत गुप्ते इन दिनों अपने लोकप्रिय साक्षात्कार कार्यक्रम “खुपते तिथे गुप्ते” के कारण सुर्खियों में हैं। अब तक उन्होंने राज ठाकरे, नारायण राणे और संजय राऊत जैसे कई राजनीतिक नेताओं का साक्षात्कार लेकर उनसे तीखे और चुभने वाले प्रश्न पूछे हैं। इसी क्रम में अब अवधूत गुप्ते ने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो साझा किया है, जिसमें उन्होंने यह बताया है कि वास्तव में उन्हें क्या खलता है। उनकी यह पोस्ट वर्तमान में चर्चा का विषय बनी हुई है।

दरअसल, अवधूत गुप्ते के घर में कुछ “बिन बुलाए मेहमान” आ पहुँचे हैं। इन मेहमानों ने न केवल घर में घुसपैठ की है, बल्कि परिवार को काफी परेशान भी कर रहे हैं। वीडियो में साफ़ दिख रहा है कि उनके घर में बंदर घुसकर उत्पात मचा रहे हैं। गुप्ते ने यह वीडियो अपने प्रशंसकों के साथ साझा किया है।

शहरी इलाकों में जंगली जानवरों के घुस आने की घटनाएँ अब आम हो चुकी हैं। कई पर्यटन स्थलों पर भी बंदरों के झुंड दिखाई देते हैं। यही बंदर अब इंसानी माहौल में घुल-मिल गए हैं। अवधूत गुप्ते के घर में आने वाले बंदर भी इन्हीं में से हैं। हमेशा दूसरों से यह पूछने वाले अवधूत कि उन्हें क्या खलता है, अब स्वयं कह रहे हैं कि ये बंदर ही उन्हें सबसे अधिक खल रहे हैं। उनकी यह पोस्ट मनोरंजक तो है ही, लेकिन सोचने पर भी विवश करती है।

अवधूत गुप्ते ने अपनी पोस्ट में लिखा है—
“अरे गुप्ते, तुम्हें क्या खलता है? तो सच्चाई यह है कि हमें रोज़ सुबह उठते ही देखने को मिलने वाली ‘बंदरों की शरारतें’ ही खलती हैं। वीडियो में दिख रही महिला मेरी माँ हैं, जिनका दो वर्ष पूर्व फेफड़े का प्रत्यारोपण हुआ था। बंदर उनकी नाक के सामने से केले उठाकर ले जाता है (या कहें वहीं बैठकर खा जाता है!) और कई बार उन पर झपट भी पड़ता है। यह परेशानी हमारे बोरिवली के श्रीकृष्ण नगर के हर निवासी के लिए अब असहनीय हो चुकी है। कई लोगों ने वन विभाग में शिकायत भी दर्ज कराई है। मुझे विश्वास है कि वन विभाग कुछ न कुछ उपाय ज़रूर करेगा।”

उन्होंने आगे लिखा—
“संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान पास में होने के कारण यहाँ अलग-अलग पक्षियों और पशुओं का आना हमारे श्रीकृष्ण नगर की शोभा है। हम इसे वर्षों से गर्व के साथ देखते और सहते आए हैं। परंतु यह सच है कि कोरोना काल के बाद बंदरों की संख्या और उपद्रव कई गुना बढ़ गया है। इसका असली कारण यह है कि वर्षों से पार्क में घूमने जाने वाले लोग इन्हीं बंदरों को केले, वड़ा पाव, पॉपकॉर्न और चिप्स खिलाते रहे हैं।”

आज ये बंदर पूरी तरह अपने प्राकृतिक वन्य जीवन से वंचित हो चुके हैं। वे पेड़ों पर रहते तो हैं, पर पानी की टंकी के ऊपर बनी शेड के नीचे सोते हैं। हमारे पेड़ों के फल— जैसे तूत, जामुन, आम और अमरूद— भी खाते हैं, लेकिन वह केवल शौक के लिए। असली परेशानी तब होती है, जब घरों में रोटी बेलने और सब्ज़ी पकने की आवाज़ और गंध फैलती है। तभी ये खिड़की पर आकर चिल्लाने लगते हैं और ज़बरदस्ती भोजन मांगते हैं।

पहले बंदर कभी-कभार ही भटकते हुए इधर आ जाते थे। परंतु कोरोना काल में जब संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान में पर्यटकों का आना बंद हुआ, तब उनका भोजन भी बंद हो गया। अब वे अपना भोजन खोजने शहर में आकर बस गए हैं। यही कारण है कि वे अब यहीं रहते हैं और लोगों को लगातार परेशान कर रहे हैं।

TALK WAY NEWS

abdul hakim M.A.(urdu Lit.) Bachelor in journalism LLB diploma in mechnical engineering

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